जनजातीय समुदाय में वनोपज संकलन का विष्लेषण

(.. राज्य की मुरिया जनजाति के वनोपज संकलन में परिवर्तन के विषेष संर्दभ में)

 

डाॅ. ममता रात्रे

समाजषास्त्र एंव समाजकार्य अध्ययनषाला, पं रविषंकर षुक्ल वि.वि., रायपुर ..

*Corresponding Author E-mail: mamtaratre289@gmail.com

 

ABSTRACT:

मुरिया जनजाति एवं वनोपज संकलन-यह षोध कार्य मुरिया जनजाति का एक समाजषास्त्रीय अध्ययन विषय के अंतर्गत किया गया है इसमें मुरिया जनजाति के विभिन्न वनोपज संकलन एवं वर्तमान में उनमें हो रहे परिवर्तनों को दर्षाने का प्रयास किया गया है।

 

KEYWORDS:  वनोपज संकलन, परिवर्तन, आवागमन साधन, टोरा, अधिकार क्षेत्र

 

 


प्रस्तावना:-

मुरिया जनजाति एवं वनोपज संकलन-यह षोध कार्य मुरिया जनजाति का एक समाजषास्त्रीय अध्ययन विषय के अंतर्गत किया गया है इसमें मुरिया जनजाति के विभिन्न वनोपज संकलन एवं वर्तमान में उनमें हो रहे परिवर्तनों को दर्षाने का प्रयास किया गया है। मुरिया जनजाति का जीवन मुखयतः कृषि पर निर्भर रहता है इनका परम्परागत् व्यवसाय कृषि कार्य ही है परन्तु ये कृषि कार्य के अतिरिक्त कृषि मजदूरी, वनोपज संग्रहण, षासकीय एवं अर्धषासकीय नौकरी का कार्य भी करते है। यह जनजाति जंगलो को जलाकर कृषि करते है जिसे पेंड़ा कहते है।

 

मुरिया जनजाति प्रकृति से अत्यधिक प्रेम करते है जो कि इनकी क्रिया विधि में दिखाई देता है ये सोलह प्रकार के पेड़ो को कभी नुकसान नही पहँुचाते है इनमे सल्फी, ताड़, महुआ, बरगद, पीपल, कुल्लू, नींबू, नीम, केला, अमरूद, गूलर, तेंदू के पेड़ से

 

इस जनजाति का प्रकृति से घनिष्ठ सम्बन्ध है जंगलो से खाद्य संग्रह भी करते है इनके द्वारा महुआ की षराब, महुआ के बीज, सल्फी, तेंदू, जामुन, आम और इमली जैसे वनोपज काफी मात्रा मंे एकत्रित कर समीपवर्ती बाजारों में बेचा जाता है।

 

मुरिया महिलाएँ खाद्य संग्रह मंे प्रवीण होती है इनके द्वारा ही प्रायः संग्रहित खाद्य पदार्थाे का समीपवर्ती बाजारों में विक्रय किया जाता ये विभिन्न प्रकार के वनोपज का प्रयोग करते है साथ ही इनकी बिक्री कर आय प्राप्त करते है जंगलो से ये जड़ी बूटियो का भी संग्रहण करते है।

 

शोध साहित्य का पुनरावलोकन:

सिंह के. रंजय (2007)1 का अध्ययन जनजातियों में वन संबंधी विचारधारा के स्त्रोत पर आधारित रहा इन्होनंे अपनें अध्ययन मंे पाया कि ये करीब 20 से अधिक वनस्पति स्त्रोत जैसे फल, पेड़ो की पत्तिया का उपयोग करते है ये जंगली उत्पाद जैसे मषरूम, जाम, बेस का उपयोग करते है फिर भी ये केवल इनका 15 से 90 प्रतिषत भाग ही उपयोग में लाते है इनकी स्थिति मंे परिवर्तन के लिए इन्हे वनसंरक्षण एवं जागरूकता की आवष्यकता होना बतलाया है।

 

सरकार एवं दासगुप्ता (2005)2 ने अबूझमाड़िया जनजाति तथा वातावरण के अनुसार इनके सोचनें विचारनें के तरीके का अध्ययन किया यह जनजाति चन्द्रमा की स्थिति के अनुसार महीने का अनुमान तथा महुआ के पेड़, सल्फी के पेड़, आम के पेड़ एवं पत्तियों को देखकर ऋतुओं का अनुमान लगाते है साथ ही इनमे होने वाले परिवर्तन के अनुसार फसल, वर्षा, गर्मी इत्यादि जैसे विषयों का अनुमान अपनंे विवेक से लगाते है।

 

अध्ययन का समाजषास्त्रीय महत्वः-

मुरिया जनजाति पिछड़ी हुई जनजाति है इसने इसी कारण अनेको मनोवैज्ञानिकों, मानवषास्त्रियों, अर्थषास्त्रियों एवं समाजषास्त्रियों जैसे एल्विन वेरियर, लाला जगदलपुरी, केदारनाथ ठाकुर, रसल एवं हीरालाल षुक्ल जैसे विद्वानों का ध्यान आकर्षित किया इन्होने सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक इत्यादि जैसे विषयों पर अध्ययन किया एवं इनकी स्थिति पर प्रकाष डाला इस जनजाति में समय के साथ कई परिवर्तन हो रहंे है जो इसके अध्ययन के समाजषास्त्रीय महत्व को दर्षाते है।

 

षोध अध्ययन के उद्देष्य:

यह षोध अध्ययन मुरिया जनजाति के वनोपज संकलन में हो रहे परिवर्तन को ज्ञात करनें हेतु अध्ययन के निम्न उद्देष्य हैः-

1     मुरिया जनजाति में वनोपज संकलन की पृष्ठभूमि का अध्ययन करना।

2     मुरिया जनजाति के वनोपज संकलन में परिवर्तन को ज्ञात करना।

 

अध्ययन पद्धतिः

प्रस्तुत षोध अध्ययन मुरिया जनजाति के वनोपज संकलन में परिवर्तन का समाजषास्त्रीय अध्ययन पर आधारित है जिसके अन्तर्गत उत्तरदाताओं का चयन हेतु दन्तेवाड़ा जिलें के चार ग्रामों का चयन दैव निदर्षन के लाॅटरी प्रणाली द्वारा चयनित परिवार के मुखिया को अध्ययन इकाई के रूप में चयन किया गया है।

 

उत्तरदाताओं का व्यवसायः

व्यवसाय से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति का निर्धारण होता है व्यवसाय किसी भी समुदाय का आर्थिक स्त्रोत होता है इसके द्वारा ही परिवार का भरण-पोषण किया जाता है, किसी व्यक्ति द्वारा किया जाने वाला व्यवसाय उसकी समुदाय में स्थिति का निर्धारण करता है यह निर्धारण उसके व्यवसाय की प्रकृति, महत्व और अन्य व्यवसायों मंे संलग्न व्यक्तियों की तुलना में उसकी आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है।

 

अध्ययनगत् जनजाति का प्रमुख व्यवसाय कृषि है, लेकिन केवल कृषि ही इनका एक मात्र व्यवसाय नहीं है ये अपनी श्रम षक्ति का उपयोग अन्य कार्यो में भी करते है ये कृषि कार्यो के आलावा अन्य के पास कृषि मजदूरी, वनोपज संग्रहण, राहत कार्य, दूसरों की कृषि भूमि अधिया लेकर कृषि करना आदि जैसे कार्यो मंे अपनी श्रम षक्ति का उपयोग करते है जो इनकी आजीविका चलाने में इन्हे सहयोग प्रदान करती है।

 

उत्तरदाताओं का व्यवसाय:

अध्ययनगत् उत्तरदाताओं के व्यवसाय से संबंधित तथ्यों को जानने का प्रयास किया गया है एवं उत्तरदाताओं द्वारा संकलित तथ्यों को निम्न सारणी में दर्षानंे का प्रयास किया गया है:-

 

उत्तरदाताओं का व्यवसाय

 

 

उपरोक्त सारणी में उत्तरदाताओं के व्यवसाय सम्बन्धी संकलित तथ्यों से ज्ञात होता है कि सर्वाधिक 50.0 प्रतिषत उत्तरदाताओं द्वारा वनोपज संकलन का कार्य किया जाता है एवं सबसे कम 2.8 प्रतिषत द्वारा षासकीय एवं अर्ध-षासकीय नौकरी एवं  व्यापार किया जाता है। आवागमन साधन से निकट केे ग्राम नेरली में सर्वाधिक 50.0 प्रतिषत एवं ग्राम भांसी में 52.6 प्रतिषत द्वारा वनोपज संकलन का कार्य किया जाता है। आवागमन साधन से दूर के ग्राम बडे बचेली में 47.1 एवं ग्राम दुगेली में 50.0 प्रतिषत द्वारा वनोपज संकलन किया जाता है।

 

वनोपज संग्रहण का स्वरूप:

अध्ययनगत् उत्तरदाताओं से वनोपज संग्रहण का स्वरूप संबंधी तथ्यों को जानने का प्रयास किया गया है एवं उत्तरदाताओं द्वारा उनके द्वारा वनोंपज संग्रहित वस्तुओं का विवरण निम्न सारणी में दर्षानें का प्रयास किया गया है:-

 

 

वनोपज संग्रहण का स्वरूप ;दत्र36द्ध

उपरोक्त सारणी के विष्लेषण से स्पष्ट होता है कि 72.2 प्रतिषत उत्तरदाताओं द्वारा षहद का संग्रहण, चिरौंजी का संग्रहण 44.4 प्रतिषत द्वारा, 80.6 प्रतिषत द्वारा साल बीज, हर्रा का संग्रहण 50.0 प्रतिषत, कन्दमूल 61.1 प्रतिषत द्वारा, महुआ का संग्रहण षत-प्रतिषत, सीताफल का संग्रहण 77.8 प्रतिषत, महुआ बीज का संग्रहण षत-प्रतिषत, जामुन का संग्रहण 63.9 प्रतिषत के द्वारा, आम का संग्रहण 80.6 प्रतिषत, तिखूर का संग्रहण 38.9 प्रतिषत द्वारा, 86.1 प्रतिषत उत्तरदाताओं द्वारा इमली का संग्रहण, चार का संग्रहण 38.9 प्रतिषत, लाख का संग्रहण 27.8 प्रतिषत, आॅवला का संग्रहण 91.7 प्रतिषत, तेन्दू का संग्रहण 72.2 प्रतिषत, लुभंाग का संग्रहण 41.7 प्रतिषत, मषरूम का संग्रहण 63.9 प्रतिषत, बास्ता का संग्रहण 25.0 प्रतिषत उत्तरदाताओं द्वारा किया जाता है।

 

वनोपज संग्रहण की प्रवृति मंे परिवर्तन होना:

अध्ययनगत् जनजाति के उत्तरदाता जिनका व्यवसाय वनोपज संग्रहण करना है उनकी संग्रहण की प्रवृति में परिवर्तन होने संबंधी तथ्यों को जाननें का प्रयास किया गया एवं उत्तरदाताओं द्वारा वनोपज संग्रहण की प्रवृति में परिवर्तन संबंधी विवरण निम्न सारणी मंे दर्षानें का प्रयास किया गया है:-

 

 

वनोपज संग्रहण की प्रवृति में परिवर्तन होना

 

 

उपरोक्त सारणी के विष्लेषण से ज्ञात होता है कि कुल वनोपज संग्रहण का कार्य करने वाले उत्तरदाताओं मंे 66.7 प्रतिषत उत्तरदाता की वनोपज संग्रहण की प्रवृति में परिवर्तन हुआ है जिनमंे आवागमन साधन से निकट के ग्रामों में 82.4 प्रतिषत एवं आवागमन साधन से दूर के 52.6 प्रतिषत उत्तरदाता है। कुल 33.3 प्रतिषत उत्तरदाताओं द्वारा वनोपज संग्रहण की प्रवृति में परिवर्तन नहीं हुआ है जिनमंे आवागमन साधन से निकट के 17.6 प्रतिषत एवं आवागमन साधन से दूर के 47.4 उत्तरदाता है।

 

वनोपज संग्रहण की प्रवृति में परिवर्तन का स्वरूप:

उत्तरदाताओं में वनोपज संग्रहण की प्रवृति में परिवर्तन का स्वरूप संबंधी तथ्यों को जानने का प्रयास किया गया एवं उत्तरदाताओं द्वारा उनके वनोपज संग्रहण की प्रवृति में परिवर्तन के स्वरूप संबंधी विवरण को निम्न सारणी मंे दर्षानें का प्रयास किया गया है:-

 

 

वनोपज संग्रहण की प्रवृति मंे परिवर्तन का स्वरूप

 

 

उपरोक्त सारणी के विष्लेषण से स्पष्ट होता है कि 62.5 प्रतिषत उत्तरदातओं द्वारा वनोपज का संग्रहण बोरियों में एवं 37.5 प्रतिषत द्वारा बोरियोें में संग्रहण नहीं किया जाता है। 54.2 प्रतिषत उत्तरदाता टोकरियों एवं पहनें वस्त्रों का प्रयोग करते है तथा 45.8 प्रतिषत उत्तरदाताओं द्वारा इनका उपयोग नहीं किया जाता है एवं षत-प्रतिषत उत्तरदाताओं द्वारा वनोपज का संग्रहण अधिकार क्षेत्र तक किया जाता है।

 

निष्कर्ष: -

प्रस्तुत षोध अध्ययन के विष्लेषण से स्पष्ट होता है कि उत्तरदाताओं द्वारा वनोपज संग्रहण के अंतर्गत षहद, चिरौंजी, साल बीज, हर्रा, कन्दमूल, सीताफल, जामुन, आम, तिखूर, इमली, चार, लाख, आॅवला, तेन्दू, लुभंाग, मषरूम, बास्ता एवं महुआ-बीज, महुआ का संग्रहण षत-प्रतिषत, उत्तरदाताओं द्वारा किया जाता है। उत्तरदाता से वनोपज संग्रहण की प्रवृति में परिवर्तन होने संबंधी अध्ययन से ज्ञात होता है कि 66.7 प्रतिषत उत्तरदाताओं में परिवर्तन होना पाया गया है। वनोपज संग्रहण प्रवृति में हुए परिवर्तन में बोरियों में संग्रहण, टोकरियों एवं पहनें वस्त्रों का प्रयोग करना एवं अधिकार क्षेत्र तक सीमित संग्रहण षत-प्रतिषत द्वारा किया जाना पाया गया है।

 

REFERENCE:

1      Singh, K. Ranjay (2007): “sustainable use of ethobotanical resources” Indian Journal of Traditional Knowledge 6(3), P. 521.

2      Dasgupta Samira, Amitabha (2005): “Reflaction of Ethno Science: study on the Abujh Maria” New Delhi: mittal publication. P. 17

 

 

 

Received on 07.04.2021                Modified on 29.06.2021

Accepted on 30.06.2021     © A&V Publications All right reserved

Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2021; 9(2):93-97.

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